ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में अंतर हिंदी में।

ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में अंतर होता है? – नमस्कार, क्या आप जानते है कि ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में क्या अंतर होता है? इस समय भारत मे कोरोना महामारी के चलते मेडिकल ऑक्सीजन या सिलेंडर वाले ऑक्सीजन की कमी है जिस वजह से कई लोग अपनी जान भी गवा चुके है। इसके अलावा जिन लोगो की हालत ज्यादा गंभीर है उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा है। लेकिन ऐसे में कुछ लोगो के मन मे यह सवाल आता है कि ऑक्सीजन सिलेंडर या मेडिकल ऑक्सीजन और वेंटिलेटर में क्या अंतर होता है क्योंकि यह दोनों ही ऑक्सीजन देने का काम करते है। तो चलिए जानते है कि मेडिकल ऑक्सीजन और वेंटिलेटर में क्या अंतर होता है… Difference between Oxygen Cyilender And Ventilator in Hindi

ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में अंतर हिंदी में।
ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में अंतर हिंदी में।

मेडिकल ऑक्सीजन क्या होता है? What is Medical Oxygen in Hindi

मेडिकल ऑक्सीजन को वातावरण में मौजूद हवा से शुद्ध ऑक्सीजन अलग करके बनाया जाता है। आप सभी यह तो जानते ही है कि हवा में 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन ओर 1% अन्य दूसरी गैस जैसे कि क्रिप्टोन, जीनोन, हीलियम, नियोन और धूल या नमी जैसी अशुद्धियां होती है। अब क्योंकि हवा में सिर्फ 21% ऑक्सीजन होती है तो मेडिकल इमरजेंसी में इसे उपयोग में नही लाया जा सकता है। इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को लिक्विड फोम में एक खास तरीके से बड़े बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है।

मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनता है? जानिए 

मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े बड़े प्लांट में बनाया जाता है, वातावरण में मौजूद हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1% अन्य दूसरी गैस जैसे आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन होती हैं। इस प्रोसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है,जिससे कि उस मे से धूल-मिट्टी को हटाया जा सके, इसके बाद हवा को कंप्रेस किया जाता है। इन गैसों का बॉयलिंग पॉइंट काफी कम तो होता है लेकिन अलग-अलग भी होता है। इन्हें जमा करके ठंडा किया जाए तो यह सभी गैस बारी बारी से लिक्विड बनती जाएगी, इसके बाद इन्हें अलग अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लिया जाता है। तो इस तरह से 99% तक शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है।

मेडिकल ऑक्सीजन कब दिया जाता है?

अब सवाल आता है कि मेडिकल ऑक्सीजन या ऑक्सीजन सिलेंडर कब दिया जाता है तो जैसा अभी आपको बताया कि हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1% अन्य गैस होती है। हमारे श्वशन में नाइट्रोजन और दूसरी गैसों का कोई काम नही होता है, तो जब हम सांस लेते है तो उसका 21% ही अंदर जाता है। यानी कि जब हम सांस लेते है तो हमारे फेफड़ों को नाइट्रोजन और दूसरी गैसों को अलग करना पड़ता है। लेकिन फेफड़े ये काम तब ही कर सकते है जब वो पूरी तरह से स्वास्थ्य हो। लेकिन जब फेफड़े डैमेज हो जाते है तो वह यह सब काम नही कर पाते है यानी वो नाइट्रोजन और दूसरी गैस को अलग नही कर पाते है। तो ऐसे में उन्हें जरूरत होती है शुद्ध ऑक्सीजन की, और तब उन्हें लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन दिया जाता है। जिससे कि फेफड़ों को ये सब न करना पड़े।

ऑक्सीजन सिलेंडर में ऑक्सीजन लिक्विड फोम में होता है और जब इसका रेगुलेटर चालू किया जाता है तो वह गैस में बदल जाता है। जैसे कि अपने देखा को हमारे में घरों में एलपीजी गैस होती है वो लिक्विड फोम में होती है तो उसका रेगुलेटर चालू पर गैस में बदल जाती है।

ऑक्सीजन सिलेंडर में से एक पाइप निकलता है जिससे शुद्ध ऑक्सीजन प्रेशर के साथ मरीज तक पहुचता है। बता दे कि इसमें मरीज खुद सांस लेता है। यानी कि मेडिकल ऑक्सीजन या ऑक्सीजन सिलेंडर तभी कारगर है जब मरीज खुद सांस लेने में सक्षम हो। ऑक्सीजन सिलेंडर में बिजली की जरूरत नही पड़ती है, हालांकि इन्हें खाली होने पर रिफिल करवाना पड़ता है।

वेंटीलेटर क्या होता है? कैसे काम करता है?

जब कोई व्यक्ति खुद से सांस नही ले पाता है मतलब उसके फेफड़े डैमेज हो जाते है और वह काम कर नही रहे होते है तो ऐसे में वेंटीलेटर (Ventilator) काम आता है। वेंटीलेटर किसी मरीज को बचाने की एक आखिरी कोशिश होती है। वेंटीलेटर को मकेनिकल वेंटीलेटर भी कहते है, ये एक मशीन होती है जो कि पल्स रेट, ऑक्सीजन लेवल ये सभी चीज़े बताता है।

वेंटीलेटर सिर्फ मुंह तक ऑक्सीजन नही भेजता है, बल्कि यह फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुचाने का काम करता है। मतलब जब इंसान के फेफड़े काम नही करते है तब यह फेफड़ों के अंदर तक ऑक्सीजन भेजता है और कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकलता है। इसमें सबसे पहले मरीज को एनेस्थीसिया दिया जाता है, और फिर उसके गले में एक ट्यूब डाली जाती है और इसी ट्यूब के द्वारा ऑक्सीजन फेफड़ों तक पहुचता है और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलता है। बता दे कि इसमें मरीज को खुद सांस नही लेनी होती। देखा जाए तो 40 से 50 प्रतिशत मामलों में वेंटिलेटर पे रखे हुए मरीजों की डेथ हो जाती है।

ऑक्सीजन सिलेंडर/मेडिकल ऑक्सीजन ओर वेंटीलेटर में अंतर?

जब मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है तो उसे मेडिकल ऑक्सीजन दिया जाता है। लेकिन जब मरीज सांस नही ले पाता तो उसे वेंटीलेटर पर रखा जाता है।

मेडिकल ऑक्सीजन मरीज के मुंह तक एक ट्यूब और मास्क के जरिये पहुचता है। जबकि वेंटिलेटर प्रेशर के साथ फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है और कार्बन डाई ऑक्साइड निकलता भी है।

वेंटीलेटर लगाना भी एक मुश्किल काम होता है जबकि ऑक्सीजन सिलेंडर/मेडिकल ऑक्सीजन देना आसान होता है।

ऑक्सीजन सिलेंडर में बिजली की जरूरत नही होती है, लेकिन वेंटिलेटर के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है।

वेंटिलेटर में एक पाइप गले से डाला जाता है जो फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुचता है। जबकि ऑक्सीजन सिलेंडर से पाइप ओर मास्क के जरिये ऑक्सीजन मरीज तक पहुचता है।

तो अब आपको काफी अच्छे से समझ आ गया होगा कि मेडिकल ऑक्सीजन क्या होता है, कब दिया जाता है और ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटीलेटर में क्या अंतर होता है। उम्मीद है आपके लिए यह जानकारी उपयोगी साबित होगी। इस ज्ञानवर्धक जानकारी को अपने मित्रो के साथ साझा जरूर करे धन्यवाद….

Q.1 मेडिकल ऑक्सीजन क्या होता है?

Ans. मेडिकल ऑक्सीजन को वातावरण में मौजूद हवा से शुद्ध ऑक्सीजन अलग करके बनाया जाता है। आप सभी यह तो जानते ही है कि हवा में 21% ऑक्सीजन, 78% नाइट्रोजन ओर 1% अन्य दूसरी गैस जैसे कि क्रिप्टोन, जीनोन, हीलियम, नियोन और धूल या नमी जैसी अशुद्धियां होती है। अब क्योंकि हवा में सिर्फ 21% ऑक्सीजन होती है तो मेडिकल इमरजेंसी में इसे उपयोग में नही लाया जा सकता है। इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को लिक्विड फोम में एक खास तरीके से बड़े बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है।

Q.2 मेडिकल ऑक्सीजन कैसे बनता है?

Ans. मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े बड़े प्लांट में बनाया जाता है, वातावरण में मौजूद हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1% अन्य दूसरी गैस जैसे आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन होती हैं। इस प्रोसेस में हवा को फिल्टर किया जाता है,जिससे कि उस मे से धूल-मिट्टी को हटाया जा सके, इसके बाद हवा को कंप्रेस किया जाता है। इन गैसों का बॉयलिंग पॉइंट काफी कम तो होता है लेकिन अलग-अलग भी होता है। इन्हें जमा करके ठंडा किया जाए तो यह सभी गैस बारी बारी से लिक्विड बनती जाएगी, इसके बाद इन्हें अलग अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लिया जाता है। तो इस तरह से 99% तक शुद्ध ऑक्सीजन मिलता है।

Q.3 मेडिकल ऑक्सीजन कब दिया जाता है?

Ans. जब फेफड़े डैमेज हो जाते है यानी वो नाइट्रोजन और दूसरी गैस को अलग नही कर पाते है। तो ऐसे में उन्हें जरूरत होती है शुद्ध ऑक्सीजन की, और तब उन्हें लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन दिया जाता है। जिससे कि फेफड़ों को ये सब न करना पड़े।

Q.4 वेंटीलेटर क्या होता है?

Ans. जब कोई व्यक्ति खुद से सांस नही ले पाता है मतलब उसके फेफड़े डैमेज हो जाते है और वह काम कर नही रहे होते है तो ऐसे में वेंटीलेटर (Ventilator) काम आता है। वेंटीलेटर किसी मरीज को बचाने की एक आखिरी कोशिश होती है। वेंटीलेटर को मकेनिकल वेंटीलेटर भी कहते है, ये एक मशीन होती है जो कि पल्स रेट, ऑक्सीजन लेवल ये सभी चीज़े बताता है।

 

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