मकर संक्रांति क्यूँ मनाई जाती है ?

नमस्कार दोस्तों ! आज हम बात करेंगे “मकर संक्रांति” के बारे में । मकर संक्रांति एक हिन्दू पर्व है, संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही वैज्ञानिक महत्व भी बताया जाता है। यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है फिर चाहें इसका नाम या मनाने का तरीका कुछ भी हो। तो आइये इस पर्व के बारे में विस्तार से जानते हैं-

मकर संक्रांति किसे कहते हैं ?

सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को “संक्रांति” कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति की अवधि ही सौरमास है। वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन इनमें से 4 संक्रांति महत्वपूर्ण हैं, जोकि मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति हैं । प्रति माह होने वाला सूर्य का निरयण यानी राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सामान्यतया आम लोगों को सूर्य की मकर संक्रांति का पता है क्यूंकि इस दिन दान-पुण्य किया जाता है। इसी दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इस संक्रांति को सजीव माना गया है।

मकर संक्रांति क्यूँ मनाई जाती है
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मकर संक्रांति क्यूँ मनाई जाती है ?

इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि की राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है । इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं । शास्त्रों में यह समय देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता है। मकर संक्रांति में सूर्य के उत्तरायण होने से गरम मौसम की शुरुआत होती है। इसे इस साल 15 जनवरी 2020 को मनाया जायेगा।

जानिये मकर संक्रांति पर्व का महत्व –

मकर संक्रांति देवताओं का प्रभातकाल माना गया है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। पुरानी मान्यता है की संक्रांति पर किया गया दान साधारण दान से हज़ार गुना पुण्य प्रदान करता है।

ये है मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व –

• मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन की क्रिया होती है। इससे तमाम तरह के रोग दूर हो जाते हैं। इसलिये इस दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।
• मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठण्ड का मौसम रहता है। इस मौसम में तिल-गुड़ का सेवन सेहत के लिये लाभदायक रहता है और यह बात चिकित्सा विज्ञान भी कहता है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और यह ऊर्जा सर्दी में शरीर की रक्षा करती है।
• इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का वैज्ञानिक कारण यह है की खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। अदरक और मटर मिलाकर खिचड़ी बनाने पर यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।

जानिये साल 2020 में कब है मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त –

मकर संक्रांति 2020

15 जनवरी

संक्रांति काल – 07:19 बजे (15 जनवरी 2020)

पुण्यकाल – 07:19 से 12:31 बजे तक

महापुण्य काल – 07:19 से 09:03 बजे तक

संक्रांति स्नान – प्रातःकाल, 15 जनवरी 2020

मकर संक्रांति पूजा की विधि और व्रत –

सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के पानी में तिल मिलाकर नहाये। इसके बाद लाल कपड़े पहनें और दाहिने हाथ में जल लेकर पूरे दिन बिना नमक खाये व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद व्रत के साथ दिन में श्रद्धा और आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करने का भी संकल्प लें। फिर सूर्यदेव को तांबे के लोटे में जल लेकर शुद्ध जल चढ़ाये। इस जल में लाल फूल, लाल चंदन, तिल और थोड़ा सा गुड़ मिलाये।

जल चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें –

ॐ घृणि सूर्यादित्याय नमः

इसके बाद नीचे दिए गए मंत्रों से सूर्यदेव की स्तुति करें और सूर्य देवता को नमस्कार करें –

ॐ सूर्याय नमः

ॐ आदित्याय नमः

ॐ सवित्रे नमः

ॐ मार्तण्डाय नमः

ॐ विष्णवे नमः

ॐ भानवे नमः

ॐ मरीचये नमः

मकर संक्रांति व्रत की कथा –

कथा 1 – महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरवों की सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त हुआ था। अर्जुन के बाण लगने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिये इस दिन को निर्धारित किया था। भीष्म जानते थे की सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता और उसे इस मृत्युलोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण हुआ तभी भीष्म पितामह ने प्राण त्याग दिए।

कथा 2 – एक धार्मिक मान्यता के अनुसार संक्रांति के दिन ही माँ गंगा स्वर्ग से अवतरित होकर राजा भागीरथ के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होती हुईं गंगासागर तक पहुंची थीं। धरती पर अवतरित होने के बाद राजा भागीरथ ने गंगा के पावन जल से अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। इस दिन पर गंगा सागर पर नदी के किनारे भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

कथा 3 – शास्त्रों में वर्णित एक और कथा के अनुसार माता यशोदा ने संतान प्राप्ति के लिये मकर संक्रांति के दिन व्रत रखा था। इस दिन महिलाएं तिल, गुड़ आदि दूसरी महिलाओं को बांटती हैं। ऐसा माना जाता है की तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुईं थीं। इसलिये इसका प्रयोग पापों से मुक्त करता है! तिल के उपयोग से शरीर निरोगी रहता है और शरीर में गर्मी का संचार होता है।

मकर संक्रांति की पूजा से होने वाले लाभ –

इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिये यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आध्यात्मिक भावना शरीर को बढाती है और उसे शुद्ध करती है। इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते हैं। समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फैलाने का यह धार्मिक समय होता है।

मकर संक्रांति पर क्या करें –

मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान व पुण्य के मंगल समय का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के पावन पर्व पर गुड़ व तिल लगा कर नर्मदा में स्नान करना शुभदायी होता है!

इसके पश्चात् दान संक्रांति में गुड़, तेल, कम्बल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है तथा पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति पर तिल के महत्व की पौराणिक कहानी-

एक पौराणिक कथा के अनुसार, शनि देव को उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे। इसी कारण सूर्यदेव ने शनि देव और उनकी माँ छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माँ ने सूर्यदेव को कुष्ठरोग का श्राप दें दिया।

पिता को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर यमराज (जो की सूर्य देव की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र हैं) ने तपस्या की। यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। लेकिन सूर्यदेव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर “कुम्भ” (शनि देव की राशि) को जला दिया। इससे दोनों को बहुत कष्ट हुआ।

मकर संक्रांति पर्व विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है –

उत्तरप्रदेश – उत्तरप्रदेश में मकर संक्रांति को “खिचड़ी पर्व” कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।

गुजरात और राजस्थान – गुजरात और राजस्थान में यह पर्व “उत्तरायण पर्व” के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।

आंध्रप्रदेश – आंध्रप्रदेश में “संक्रांति” के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है।

तमिलनाडु – तमिलनाडु में किसानों का ये प्रमुख पर्व “पोंगल” के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।

महाराष्ट्र – महाराष्ट्र में लोग इस दिन गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनायें देते हैं।

पश्चिम बंगाल – पश्चिम बंगाल में हुगली नदी पर गंगासागर मेले का आयोजन किया जाता है।

असम – असम में “भोगली बिहू” के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।

पंजाब – पंजाब में एक दिन पूर्व यह “लोहड़ी पर्व” के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।

मकर संक्रांति पर राशि के अनुसार करें दान-पुण्य –

मेष – तिल-गुड़ का दान करें, उच्च पद की प्राप्ति होगी।

वृष – तिल डालकर अर्घ्य दें, बड़ी ज़िम्मेदारी मिलेगी।

मिथुन – जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, ऐश्वर्य प्राप्ति होगी।

कर्क – चावल-मिश्री-तिल का दान दें, कलह संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा।

सिंह – तिल, गुड़, गेंहू, सोना दान दें, नई उपलब्धि मिलेगी।

कन्या – पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दें, शुभ समाचार मिलेगा।

तुला – सफ़ेद चंदन, दुग्ध, चावल दान दें, शत्रु अनुकूल होंगे।

वृश्चिक – जल में कुमकुम, गुड़ दान दें, विदेशी कार्यों से लाभ, विदेश यात्रा होगी।

धनु – जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प तथा तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, चारों ओर विजय होगी।

मकर – तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, अधिकार प्राप्ति होगी!

कुम्भ – तेल-तिल का दान दें, विरोधी परास्त होंगे।

मीन – हल्दी, केसर, पीत पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, सरसों, केसर का दान दें, सम्मान और यश बढेगा।

आशा करते हैं आपको हमारी यह जानकारी पसंद आई होगी यदि आपके मन में कोई सवाल सुझाव है तो हमें कमेंट करके अवश्य बताएं ।

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